लेखनी प्रतियोगिता -11-Mar-2023 ईश्वर के प्रति आस्था
ईश्वर के प्रति आस्था
मनोहर लाल गाँव के बडे़ जमीदार थे। गाँव का हर कोई उनके दरवाजे पर आकर सलाम करता था। वह दान पुण्य भी बहुत करते थे। उनके दरवाजे से कोई भी मांगने वाला खाली नहीं जाता था। वह धार्मिक विचारौ के आदमी थे। उनको भगवान पर पूरा भरोसा था लेकिन उनके कोई सन्तान नही थी इसका उनको बहुत दुःख था।
मनोहर लाल ने दो शादिया करली थी उन्होंने डाक्टरी इलाज भी बहुत करवाया था। झाड़ फूक करने वालौ के दरवाजे पर भी माथा पटका लेकिन नतीजा कुछ नहीं निकला।
अब उनका विश्वास डोलने लगा। एवं उनकी आस्था भी कमजोर पड़ने लगी। उसु समय उनके दरवाजे पर एक सन्त पधारे।
मनोहर लाल ने सन्त जी की बहुत सेवा की लेकिन उनके चहरे की मलिनता देखकर सन्त जी ने पूछा," बेटा ! मुझे कुझ ऐसा आभास होरहा है कि तुम अपने जीवन से खुश नही हो। तुम्हारे अन्दर कोई न कोई ऐसी चिन्ता है जिसके कारण अपार धन सम्पत्ति होने के बाद भी तुम परेशान हो। हमें अपनी इस परेशानी का कारण बताओ शायद हम कोई राह दिखा सके।"
सन्त महाराज की यह बातें सुनकर वह बोले," महाराज आपकी वाणी सत्य है बैसे भी आप तो सभी के मन को पढ़लेते हो। आपने मेरे चेहरे के भाव पढ़ लिए है। मेरे पास धन सम्पत्ति की कोई कमी नही है। मैने अपने जीवन में कभी किसी का बुरा नहीं किया है। कभी किसी गरीब की बददुआ नही ली परन्तु फिरभी नजाने कौनसे जन्म के पापौ के कारण मैं सन्तान हीन हूँ। आप मेरी इस समस्या से छुटकारा दिला सकते हो तो कोई उपाय बताओ। "
मनोहर की बात सुनकर सन्त महाराजबोले," बेटा हम कोई भगवान नहीं है। परन्तु उस ईश्वर में हमारी आस्था है और हमें भरोसा है कि वह हमारे इस भरोसे का मान अवश्य रखेगे और तुम्हारे सन्तान अवश्य होगी। " इतना कहकर उन्होंने अपनी झोली से दो फल निकालकर मनोहर को दिये।
उन्होंने वह फल मनोहर को देते हुए कहा कि तुम यह फल अपनी दोंनौ पत्नियों को खिला देना। और जब बच्चे होजाय तब उनको माता के दरबार में अवश्य लेकर जाना।
मनोहर लाल के मन में भी आस्था जागृति हुई और उसने वह फल अपनी दोनौ पत्नियौ को खिला दिए। ईश्वर की ऐसी कृपा हुई कि एकबर्ष के अन्दर ही उनकी दोनौ पत्नियां गर्भवती होगयी और समय पर उन्होंने दो बेटों को जन्म दिया।
मनोहर लाल ने बेटौ के जन्म पर बहुत खुशियां मनायी। बहुत दान पुण्य किया । गरीबौ को बहुत धन दिया । उन्होंने सन्त महाराज को खोजने की बहुत कोशिश की परन्तु वह कहीं भी नहीं मिले। हन्त महाराज उस दिन के बाद नजर नहीं आये। ऐसा महसूस होरहा था जैसे कि वह केवल उनकी समस्या को सुलझाने आये थे।
इसके बाद मनोहर लाल की ईश्वर के प्रति आस्था और मजबूत होगयी। वह अपने बेटौ को देवी माँ के दरबार में लेकर गये।
इस तरह मनोहर लाल की ईश्वर के प्रति आस्था बढ़ती ही गयी।
आज की दैनिक प्रतियोगिता हेतु रचना।
नरेश शर्मा " पचौ
sunanda
14-Mar-2023 05:00 PM
nice
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डॉ. रामबली मिश्र
12-Mar-2023 09:19 PM
बेहतरीन
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सीताराम साहू 'निर्मल'
12-Mar-2023 03:35 PM
शानदार प्रस्तुति 👌
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